
झाबुआ के निर्दोष युवक को POCSO केस में मिली न्यायिक राहत: अधिवक्ता श्रद्धा सुशील बाजपेयी ने बेगुनाही साबित कर दिलाई ज़मानत
झाबुआ, मध्यप्रदेश –
POCSO और दुष्कर्म जैसे गंभीर धाराओं में फंसे एक निर्दोष युवक को आखिरकार न्याय मिला, जब मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में अधिवक्ता श्रद्धा सुशील (पहलवान) बाजपेई ने बेबाक तरीके से उसका पक्ष रखा और सिर्फ तीन महीने में ज़मानत दिलवाकर उसे न्याय दिलाया। यह मामला न केवल एक कानूनी लड़ाई थी, बल्कि समाज को सोचने पर मजबूर करने वाला उदाहरण भी बन गया है कि इन कानूनों के दुरुपयोग से किसी की पूरी ज़िंदगी तबाह हो सकती है।
इस पूरे घटनाक्रम में श्रद्धा बाजपेई ने जिस साहस, संवेदनशीलता और तर्कशक्ति के साथ मामले को प्रस्तुत किया, उसने साबित किया कि कानून का सही उपयोग हो तो निर्दोष को बचाया जा सकता है। श्रद्धा को यह आत्मबल और न्याय के प्रति समर्पण विरासत में मिला है—उनके पिता, स्वर्गीय सुशील बाजपेयी, जो समाजसेवी, शिक्षाविद और न्यायप्रिय व्यक्तित्व थे, श्रद्धा की माताजी सुनीता वाजपई शिक्षिका है। दोनों हमेशा से ही हमेशा सच और ईमानदारी के साथ खड़े रहते थे। श्रद्धा को उन्हीं के मूल्यों ने यह लड़ाई लड़ने की हिम्मत दी।
मामले का विवरण:
यह मामला झाबुआ जिले के एक युवक और नाबालिग युवती से जुड़ा है। युवती द्वारा कथित रूप से युवकों को फंसाने, उनसे संपर्क बनाकर पैसे ऐंठने और इंकार करने पर झूठे यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने की प्रवृत्ति सामने आई। मौजूदा प्रकरण में युवती ने युवक पर धारा 376(n), POCSO की धारा 5 और 6 लगाकर आरोप लगाया कि उसके साथ दुष्कर्म हुआ और वह गर्भवती हो गई। इसके एवज में युवती ने युवक के परिवार से मोटी रकम की मांग की।
परिवार द्वारा सच्चाई के आधार पर आरोपों से इनकार किए जाने के बाद मामला अदालत में पहुंचा। तब श्रद्धा बाजपेई ने मामले की गहराई में जाकर तथ्यों को अदालत के समक्ष रखा और तीन महीनों की कानूनी प्रक्रिया के बाद युवक को न्याय मिला।
एक संदेश समाज के लिए:
श्रद्धा बाजपेई का यह प्रयास केवल एक केस की जीत नहीं, बल्कि समाज को एक सशक्त संदेश भी है—कि हमारे कानून का उद्देश्य सुरक्षा है, शोषण नहीं। उनके पिता स्व. सुशील बाजपेयी की शिक्षाओं और मूल्यों की जीवंत मिसाल बनकर श्रद्धा ने साबित किया कि न्याय की राह कठिन हो सकती है, लेकिन हिम्मत और सच्चाई के साथ कोई भी लड़ाई जीती जा सकती है।